दरअसल में उस शिकारी ने टोपी को बंदूक की नाल में ही लटकाया था। इसलिए वह कहीं भी कितनी भी दूर चला जाता परन्तु वह आसानी से आंख बंद करके निशाना लगाता तो बंदूक की गोली नाल के रास्ते जाकर टोपी को आर-पार कर देती।
✅ दुनियाभर की कई विशेष सेनाएँ "ब्लाइंड शूटिंग" (बिना देखे निशानेबाजी) का अभ्यास करती हैं, जिसमें वे अपने अन्य इंद्रियों का उपयोग करके निशाना साधते हैं।
✅ निशानेबाजी में धैर्य, एकाग्रता और सांस नियंत्रण बेहद महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि हल्की सी झलक या कंपन भी निशाने को चूक सकता है।
✅ 1896 में आयोजित पहले आधुनिक ओलंपिक में निशानेबाजी को आधिकारिक खेल के रूप में शामिल किया गया था।
✅ कुछ पारंपरिक निशानेबाज ध्वनि और स्पर्श के आधार पर भी निशाना लगा सकते हैं, जिसे "Taktil Shooting" कहा जाता है।
✅ निशानेबाजों की दिल की धड़कन भी उनके निशाने पर असर डाल सकती है, इसलिए वे अक्सर श्वास नियंत्रण तकनीकों का अभ्यास करते हैं।
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